छोटी नैतिक कहानी-मछली और मोढ़क

 

One line :- यह छोटी नैतिक कहानी-मछली और मोढ़क के आस—पास घूम रही है और जो आपको सीखाती है की हमें अपनी सोच को बडा रखना चहिए।

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छोटी नैतिक कहानी-मछली और मोढ़क | story Character | कहानी के पात्र  

1.मछली
2.मोढ़क


a short hindi story with moral

छोटी नैतिक कहानी-मछली और मोढ़क

{ शांम का समय।} evening time 

गांव के gaon ke दो आदमी आपिस में बांतें करते हुऐ जा रहे है,हामरे गांव पूरे देश में जंगल वाले गांव से जाना जाता है।


आदमी ………..हां यह तो है.

 

दूसरा आदमी ………….इस लिए तो मुझे गांव अच्छे लगते है……. शहर में तो गंदगी के ढेंरों कों देखकर मन भी गदा होने लगता है।

 


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दोनों बाते करते — करते आगे निकल गऐ।  उसी रास्ते में एक कुआ था,दोनों आदमीयों के पीछे एक मेढ़क चला आ रहा है.

अन्धेरा होने की बजा से बो कुऐ में जा गिरा उसने निकलने की कोशिश की लेकिन but  उससे नहीं निकला गया। काफी समय बीत गया था.

अब कुआ ही उसकी दुनियां duniya दारी बन चुंका था,कभी — कभी वो कुअे well से उपर की तरफ देखता तो कुआ उसे उतना हीं दिखता था।

 

वो कुअे कें भीतर चंक्कर लगाकर उसे इधर — उधर से देखने की कोशिश try करता था,एक दिन one day वो अपने शिकार की तलाश में पानी में pani mein छूप कर बैठा हुआ था।

 


3.story of inspiration in hindi

 

मछली………….एक दम बोली ….अरे — अरे छोडों मुझे तुम कौन हो भाई।?


मोढ़क ………….मछली से ……मेैं इस कुअे का मालिक हूं।


मोढ़क …………तुम यहां मेरे बिना पूछे नहीं आ सकती।


मछली ………….मैं रास्ता भूल गई भाई ….छोड़ दे मुझे भगवान की खातिर।


मोढ़क को मछली पर तरश आ गया और उसने उसको छोड़ दिया।

 


4.inspirational story in hindi

 

मोढ़क ………..तुम रास्ता भूल गई और मेे लंबे समय से यहां फसा हूं।

मछली ………..कोई बात नहीं एक बात बताओ।


मेाढ़क नें हां में सिर हीला दिया।


मछली …..मैं सुमदर में रहती हूं ….और मुझे पता है की इसा अकार कितना है

मछली …..क्यां तुम इसका अकार बता सकते हो।?

 


मोढ़क सोचने लगा।


मोढ़क…. मेैं कभी सुमदर में नहीं गया ….अपन का इधर ही शिकार मिलता रहता है।


मोढ़क ………हां और मोढ़क भाई लोग जाते होगा।


मोढ़क छलाग लगते बोला………इतना होगा सूमदर का अकार।

मछली ………….हॅसते …..अरे नहीं इससे भी ज्यादा बडा है।

मोढ़क ने एक और छलाग लगा और बोला …..यह लो इतना तो पक्का होगा।

 

मछली ……………नहीं रे मोढ़क भाई नहीं।

मोढक ने एक और छलांग लगा दी,लेकिन but मछली ने नां में सिर हीला दिया। यह सिलसिला काफी समय long time तक रहा मोढ़क छलांगें लगता रहा।

 


अंत में ..

यहां पर देखा जाऐ,तो मछली खुले मौहोल में रहने के कारण बडी सोच soch थी और मोढ़क कुअे में well mein रहता था तो वो उस हिसाब से सोचता था।

 

हमें भी मछली की तरहां आपनी सोच को बडी रखना चहिऐ,अगर हम अपनी सोच को छोटी रखते है, तो हम छोटे — मोटे कामों तक ही सहिम रह जाते है।


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